पुस्तकालय किसी भी शैक्षणिक संस्थान की "रीड" कही जाती है मगर आज पुस्तकालय और पुस्तकालय अध्यक्ष अपनी पहचान नहीं बना पा रहा है आज एक तरफ जहा शासकीय और गैर शासकीय संस्थाओ में लायब्रेरियन के पद और वेतनमान में भिन्नता नजर आती है इससे उक्त प्रोफेसन की दिशा और दशा का पता चलता है क्या बाकई मई हम खुद जिम्मेदार है आज प्राइवेट कॉलेज का लायब्रेरियन खुद नहीं जानता की वह नॉन टीचिंग मई आता है या टीचिंग स्टाफ में आता है और यदि वह नॉन टीचिंग में लाया जाता है तो क्यों क्या उसका टीचिंग क्रियाकलाप से कुछ लेना देना नहीं है मेरे ख्याल से इसके लिए कही न कही हमारा लायब्रेरियन समाज भी जिम्मेदार है आज जहा नाईयो का संघ हो सकता है तो लायब्रेरियन का क्यों नहीं खासकर मध्यप्रदेश के संद्रभ्र में कोई सक्रिय संघ नहीं है जिसने कभी पुस्तकलय अधिनियम , या अन्य किसी कार्य के लिए आन्दोलन किया हो या कोई कारगर कदम उठाया हो इश्के लिए उपरी स्तर पर बैठे हुए बुद्धिजीवियों को ज्यादा जिम्मेदार समझना चाहिए क्योकि उनकी आवाज ज्यादा असरकारक होती है साथ ही आम आदमी तो अपनी जीवका चलने मई ही लगा रहता है आज जहा शासन लायब्रेरियन को राजपत्रित अधिकारी की श्रेणी में लाने की बात कर रहा है वही निजी संस्थाओ के लायब्रेरियन मानक मजदूरी को भी तरश रहे है इसलिए इस "अँधेरे को DOOR करने के लिए किसी न किसी को तो जलना ही होगा " में लिंक के माध्यम से नियम प्रश्नों के उत्तर जानना चाहता हूँ
१) क्या सुचना के अधिकार के अंतर्गत यह जानकारी मिल सकती है की मध्य प्रदेश में अभी तक पुस्तकालय अधिनियम क्यों नहीं आ पा रहा है
२) मध्यप्रदेश में लायब्रेरियन के कुल कितने पद रिक्त है
३) मध्यप्रदेश में मध्य प्रदेश लोक सेवा द्वारा लायब्रेरियन के पद क्यों नहीं भरे जा रहे है
अंत में में किसी मशहूर शायर की पंक्तियों के साथ अपनी बात का समापन करुगा
" हंगामा खड़ा करना मेरा मकशाद नहीं ये सूरत बदलना चाहिए, मेरे सीने मे ना सही तेरे सीने में ही सही पर आग तो जलना चाहिए"
Wednesday, March 31, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment