Thursday, June 24, 2010

एथिक और मिथक ऑफ़ लायब्रेरी प्रोफेशन

जब जब कोई लायब्रेरी प्रोफेशन धर्म संकट (क्या करे क्या न करे ? ) कि स्थिति में होता है तब वह लायब्रेरी के पाच नियमो को आधार बनाकर निर्यण लेता है अर्थात हम इनको ही लायब्रेरी के एथिक मानते है
लेकिन लायब्रेरी के कुछ मिथिक भी है जो निम्न प्रकार है
१) लायब्रेरी में काम ही क्या होता है ?
२) लायब्रेररियन तो नॉन टीचिंग मे आता है
३) लायब्रेररियन का काम दोयम दर्जे का होता है
४) लायब्रेररियन का कम किताबे लेना और देना है
५)

Wednesday, March 31, 2010

"किताबो का आदमी हाशिये पर क्यों है ?"

पुस्तकालय किसी भी शैक्षणिक संस्थान की "रीड" कही जाती है मगर आज पुस्तकालय और पुस्तकालय अध्यक्ष अपनी पहचान नहीं बना पा रहा है आज एक तरफ जहा शासकीय और गैर शासकीय संस्थाओ में लायब्रेरियन के पद और वेतनमान में भिन्नता नजर आती है इससे उक्त प्रोफेसन की दिशा और दशा का पता चलता है क्या बाकई मई हम खुद जिम्मेदार है आज प्राइवेट कॉलेज का लायब्रेरियन खुद नहीं जानता की वह नॉन टीचिंग मई आता है या टीचिंग स्टाफ में आता है और यदि वह नॉन टीचिंग में लाया जाता है तो क्यों क्या उसका टीचिंग क्रियाकलाप से कुछ लेना देना नहीं है मेरे ख्याल से इसके लिए कही न कही हमारा लायब्रेरियन समाज भी जिम्मेदार है आज जहा नाईयो का संघ हो सकता है तो लायब्रेरियन का क्यों नहीं खासकर मध्यप्रदेश के संद्रभ्र में कोई सक्रिय संघ नहीं है जिसने कभी पुस्तकलय अधिनियम , या अन्य किसी कार्य के लिए आन्दोलन किया हो या कोई कारगर कदम उठाया हो इश्के लिए उपरी स्तर पर बैठे हुए बुद्धिजीवियों को ज्यादा जिम्मेदार समझना चाहिए क्योकि उनकी आवाज ज्यादा असरकारक होती है साथ ही आम आदमी तो अपनी जीवका चलने मई ही लगा रहता है आज जहा शासन लायब्रेरियन को राजपत्रित अधिकारी की श्रेणी में लाने की बात कर रहा है वही निजी संस्थाओ के लायब्रेरियन मानक मजदूरी को भी तरश रहे है इसलिए इस "अँधेरे को DOOR करने के लिए किसी न किसी को तो जलना ही होगा " में लिंक के माध्यम से नियम प्रश्नों के उत्तर जानना चाहता हूँ
१) क्या सुचना के अधिकार के अंतर्गत यह जानकारी मिल सकती है की मध्य प्रदेश में अभी तक पुस्तकालय अधिनियम क्यों नहीं आ पा रहा है
२) मध्यप्रदेश में लायब्रेरियन के कुल कितने पद रिक्त है
३) मध्यप्रदेश में मध्य प्रदेश लोक सेवा द्वारा लायब्रेरियन के पद क्यों नहीं भरे जा रहे है
अंत में में किसी मशहूर शायर की पंक्तियों के साथ अपनी बात का समापन करुगा
" हंगामा खड़ा करना मेरा मकशाद नहीं ये सूरत बदलना चाहिए, मेरे सीने मे ना सही तेरे सीने में ही सही पर आग तो जलना चाहिए"

Tuesday, March 2, 2010

हैप्पी होली मतलब सूखी होली

हैप्पी होली का आज के सन्दर्भ मई सही मतलब है सूखी होली क्योकि आज पानी की किल्लत इतनी जाया है की पिने को भी पानी नहीं मिल रहा है इसलिए खुश हॉल होली का मतलब सूखी होली है
सभी को होली की सुभकामनाये

Sunday, February 21, 2010

सूचना के अधिकार और सूचना के अधिकारी ?

केंद्र सरकार का "सूचना का अधिकार " निश्चित ही आज एक शसक्त माध्यम है जिससे नौकर शाही, तानाशाही , भ्रष्टाचार जैसे कई बातो पर इससे अंकुश लगा है । लकिन यदि जो सूचना प्रदान करने बाले अधिकारी है उनके जगह पर यदि लायब्रेरियन को सूचना अधिकारी के रूप मै नियुक्त किया जाया तो निश्चित तौर पर तकनीकी रूप से जायदा अच्छा कार्य कर सकेगे जिससे सूचना प्रदान करने में लगने बाले समय , सुचना की गुणवत्ता , शुद्धता मै निश्चित ही सुधार आएगा । साथ ही लायब्रेरियन के पदों का सूखा भी समाप्त हो जायेगा।

Tuesday, February 16, 2010

देर आयत दुरस्त आयत


मध्य प्रदेश शासन ने लंबे समय बाद ही सही आखिर ग्रंथपाल के पद के साथ कुछ तो न्याय किया। यदि मुख्मंत्री साहब मध्यप्रदेश में पुस्तकालय अधिवेशन लाने की कोशिश करे तो निश्चित ही मध्यप्रदेश में पुस्तकालय विज्ञानं का भविष्य उज्जवल हो सकता है .